PMG News Jaipur(Raj.)
अर्थी का बोझ सबसे बड़ा होता है, और अगर किसी की मौत कोरोना जैसी संक्रामक बीमारी से हो तो बोझ और डर दोनों ही बढ जाता है। लेकिन कुछ ऐसी कोरोनावीर हैं जो हर तरह के डर और बोझ से दूर होकर अपने धर्म का बखूबी पालन कर रहे हैं। ऐसे ही एक कोरोना वीर हैं विष्णु और उनकी टीम के साथी। देश में कुछ ऐसे भी परिवार हैं जिन्होने अपनों के शव लेने से इनकार कर दिया तो कुछ जो चाहकर भी कोरोना से मरने वाले का अंतिम संस्कार नहीं कर पाए। ऐसे में विष्णु और उनकी टीम ने 65 से अधिक शवों का अंतिम संस्कार किया या फिर सुपुर्द-ए-खाक किया।
विष्णु ने बताई अपनी कहानी
मैं और मेरी टीम हर दिन प्रार्थना करती है, भगवान सब की रक्षा करे। किसी शव को जलाना फिर सुपुर्द-ए-खाक करना सबसे बड़ा भार भी है और धर्म भी। मैं आजतक किसी भी कब्रिस्तान में नहीं गया था। लेकिन कोरोना से दूसरों को संक्रमण से बचाना था इसलिए मैं और मेरी टीम ने इस जिम्मेदारी को लिया। आज हम कब्र भी खुदवाते हैं और उसमें उतरकर आखिरी मिट्टी भी हम देते हैं। अब तक मैं अकेले 15 से अधिक मुसलमानों के शवों को दफना चुका हूं और 15 शवों को अंतिम संस्कार कर चुका हूं और पूरी टीम की बात करें तो 68 शवों (हिंदू-मुस्लिम) का अंतिम संस्कार किया है।
जब भी कोरोना पीड़ित की मौत के बाद शव हमारे पास लाया जाता है तो दिल में डर बना रहता है। हांलाकि दिमाग में धर्म का बोध होते ही सबकुछ शांत सा हो जाता है। बिल्कुल आखिरी सत्य की तरह। हालत यह है कि मुर्दाघर में कोरोना से मरने वालो की अस्थियां रखी हैं लेकिन आजतक उसे लेने कोई नहीं आया। मेरे लिए यह कर्तव्य शायद ही पूरा हो पाता अगर मेरे साथ मंगल, मनीष, पंकज, अर्जुन और सूरज नहीं होते। हम और हमारी टीम सुबह ईश्वर से एक ही प्रार्थना करते हैं कि आज हमें किसी लाश का अंतिम संस्कार न करना पड़े। जिस दिन एक भी मौत नहीं होती है तो मुझे और मेरी टीम को बेहद खुशी होती है। मेरी व्यक्तिगत रूप से हर किसी से गुजारिश है इस संकटकाल में घर में ही रहें और अपने धर्म का पालन करें।