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कोरोना के कारण सरकार द्वारा अपने कर्मचारियों से राहत कोष में दान के लिए मदद मांगी जा रही है। इसी तरह जब पुलिस कर्मचारियों को भी सैलरी कम दिए जाने की बात मंत्रीमंडल में उठी तो गृहमंत्री अनिल विज इस बात पर अड़ गए कि पुलिसकर्मी आपातकालीन हालत में अपनी सेवाएं दे रहे हैं, उनको तनख्वाह कम देने की बजाय ज्यादा देने की जरूरत है।
गृहमंत्री के अनुसार जबरदस्ती किसी कर्मचारी की तनख्वाह नहीं काटी जाएगी। इस फैसले के बाद बड़े लेवल पर खबरों का प्रकाशन भी हुआ जिससे समाज में यही संदेश गया कि पुलिसकर्मचारियों का कोरोना राहत कोष में योगदान नहीं है। दूसरी ओर कर्मचारियों के दर्द है कि तनख्वाह भी कम मिलेगी और उनका नाम भी नहीं होगा। इस मामले पर पुलिसकर्मचारी भी खुलकर बोलने के लिए तैयार नहीं है। दबी जुबान में कर्मचारी इतना ही कह रहे हैं कि हम कौन सा राहत कोष में दान देने से मना कर रहे थे। सरकार को जरूरत थी तो बेशक पूरे महीने की तनख्वाह काट ले, लेकिन अब मामला दूसरी तरह का हो गया है। हम अपनी तरफ से दान भी दे रहे हैं और नाम भी नहीं हो रहा है।
दूसरे विभाग वाले सरकार को दान दे रहे हैं तो उनकी बड़ी बड़ी खबरें छप रही हैं लेकिन हमारा तो समाज में यह संदेश है कि हमने कोई योगदान नहीं दिया है। ऊपर से अफसरों के आदेश हैं कि कर्मचारी अपनी बेसिक तनख्वाह से जितना योगदान राहत कोष में दे रहे हैं उसकी जानकारी उनको भेजी जाए। अफसरों द्वारा लिस्ट मांगने के साथ ही हर कर्मचारी अपने सैलरी का 10 फीसदी ऑनलाइन राहत कोष में जमा करवा रहा है। पूरे हरियाणा में 76 हजार से ज्यादा पुलिसकर्मचारी हैं। इस हिसाब से सरकार बिना पुलिसकर्मियों को श्रेय दिए ही 30 करोड़ से ज्यादा का फंड जुटा लेगी। पुलिस कर्मचारियों को दर्द है कि उनकी तरफ से जो पैसा राहत कोष में दिया जा रहा है उसके लिए सरकार आम जनता तक ये संदेश जाए कि पुलिस ने ड्यूटी करते हुए भी राहत कोष में सहयोग किया है।