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Inderjeet Sharma
फागण की ग्यारस को लगने वाले बाबा मोलड़नाथ मेले का आयोजन बड़ी ही धूमधाम से किया गया। इस मेले में हरियाणा राजस्थान पंजाब उत्तर प्रदेश से श्रद्धालु आते हैं। शक्कर व शराब का प्रसाद चढ़ाकर मन्नतें मांगते हैं। इसलिए इस मेले को शक्कर मेला कहा जाता है। कनीना का बाबा मोलड़नाथ मेला क्षेत्र का बहुत बड़ा मेला है। मेले में आज भी राजा महाराजाओं के समय के मनोरंजन की पुरानी परंपराएं चली आ रही हैं जिनमें ऊंट, घोड़ों की दौड़, दंगल, कबड्डी, आदि खेले जाते हैं। 

मेले में ऊंटों की दौड़ में 15 उंटो ने भाग लिया जिसमें शाबू फिरोजपुर झिरका ने पहला स्थान 45000 रुपए प्राप्त किया । दूसरा स्थान माणा पाथेड़ा महेंद्रगढ़ ने 35000 रुपए प्राप्त किया।
घोड़ी की दौड़ में 26 गाड़ियों ने भाग लिया जिसमें बाबा मोलड़नाथ कनीना ने पहला इनाम 45000 रुपए जीता। दूसरा इनाम राजकुमार झुंझुनू ने 35000 जीता। तीसरा इनाम रामसिंह बड़बर भुआना ने 21000 रुपए जीता ।
घोड़ों की दौड़ में 4 घोड़ों ने भाग लिया जिसमें राम अवतार कुहार्ड ने पहला इनाम 11000 रुपए प्राप्त किए । दूसरा इनाम मीर सिंह भरत खेड़ी ने 8100 तीसरा इनाम बाबा घोड़े वाला दिनोद ने 5100 रुपए प्राप्त किए।
बरसात के कारण कुछ खेल नहीं खेले गए ।

बाबा मोलड़नाथ, अपने बाल रूप में बिरही से यहां आए। बताया जाता है कि बाबा मोलड़नाथ कनीना में ही नहीं मांदी, कांवी भोजावास, रोड़वाल, मानसरोवर, नीमराणा आदि स्थानों पर भी रहे और वहां भी तप किया, लेकिन उनका प्रमुख स्थल कनीना में ही स्थापित है। बाबा के मेले को देखने के लिए पंजाब राजस्थान उत्तर प्रदेश हरियाणा अनेक राज्यों से लोग आते हैं। मंदिर के पास ही 21 फुट ऊंची शिव प्रतिमा वाला शिवालय है। मोलड़नाथ मंदिर में बाबा की आकर्षक प्रतिमा लगाई हुई है। यह प्रतिमा भीम सिंह एवं उनके परिजनों ने 2007 में स्थापित करवाई थी।
मंदिर स्थल को चार चांद लगाने के लिए मंदिर के पास ही अनेक धार्मिक स्थलों का निर्माण किया गया है। मंदिर के पास 21 फुट ऊंची शिव प्रतिमा, राधाकृष्ण मंदिर, सीताराम मंदिर, माता स्थल, डूंगरमल आश्रम, खागड़ आश्रम, प्राचीन हनुमान मंदिर, 11 फुट ऊंची हनुमान प्रतिमा, माता स्थल, माता मंदिर, शनिदेव मंदिर, शहीद प्रतिमाएं, बस स्टैंड आदि मिलकर शोभा बढ़ा रहे हैं।
बाबा अपने महान चारित्रिक गुणों के कारण सभी लोग श्रद्धा एवं भक्ति से उन्हें याद करते हैं। उनकी पुण्यतिथि पर यह विशाल मेला प्रत्येक वर्ष लगता है। शक्कर मेले के रूप में प्रसिद्ध इस मेले में कई वर्षों से बुजुर्गों की दौड़, घुड़दौड़, ऊंट दौड़ एवं दंगल आयोजित किए जाते आ रहे हैं।
मोलड़नाथ धाम की सबसे बड़ी विशेषता है कि प्रत्येक घर से लगभग सभी सदस्य इस स्थान पर आकर धोक लगाते हैं। महिला भक्तों की संख्या अधिक होती है। संतों का सम्मान, जागरण एवं भंडारा आयोजित किया जाता है। कनीना का भक्त चाहें किस भी स्थान पर क्यों न हो इस दिन कनीना आकर मन्नत मांगता है। मेले में अपार भीड़ जुटती है। इस दिन लगभग समस्त बाजार बंद रहता है।

शक्कर का प्रसाद चढ़ाया जाता है। चढ़ावे की शक्कर को प्रसाद के रूप में कई दिनों तक बांटा जाता है। मेले पर सीसीटीवी कैमरों से नजर रखी जाती है। बाबा बालपन से ब्रह्मचारी एवं तपस्वी थे। बाबा गणेशनाथ उनके गुरु थे। वे कनीना में विक्रमी संवत 2006 में ब्रह्मलीन हुए। कनीना एवं आसपास के लोग जब भी कोई नया काम करते हैं तो बाबा का नाम लेते हैं। बताया जाता है कि बाबा ने कनीना में आकर यहां की बणी को ही अपना तप स्थल बनाया। तब से किसी प्रकार की कोई आपदा नहीं आई। ओलावृष्टि एवं हैजा जैसे रोग को तो भगाने की उनमें अपार शक्ति थी। बाबा मोलड़नाथ में जल पर समाधि लेने का अद्भुद गुण भी था। विक्रमी संवत 2006 फाल्गुन शुक्ल एकादशी को उन्होंने देह त्याग दिया। जिस स्थान पर उन्होंने देह त्यागा उसी स्थान पर बाबा की प्रतिमा शोभा बढ़ा रही है।मेले में कनीना के एसडीएम रणबीर सिंह भी शीश नवाने पहुंचे ।
मेले से अगले दिन भंडारा आयोजित करके साधु संतों को विदा किया जाएगा।