इंसानियत बड़ी या सियासत : ह से हिंदू, म से मुसलमान, हम यानी हिंदुस्तान…

भजन गाने कभी मंदिर में जब रसखान आते हैं, मंजर देखने ऐसा वहां भगवान आते हैं। फिरकापरस्ती उस गांव को छू नहीं सकती, बनाने राम की मूरत जहां रहमान आते हैं…। उत्तर प्रदेश के अमेठी जिले के पीढ़ी गांव में ऐसा मंजर तब सजता है जब लंबी सफेद दाढ़ी और सिर पर इस्लामी टोपी पहने बकरीदी शिव मंदिर में आते हैं। इस मंदिर का निर्माण उन्होंने बालसखा कृष्णदत्त तिवारी के संग मिलकर कराया है। इसलिए चाहे सावन का आयोजन हो या फिर महाशिवरात्रि, बकरीदी मदरसे से छुट्टी लेकर यहां शिव की सेवा में रमे नजर आते हैं। ऐसे किसी भी अवसर पर अमेठी के इस रसखान को यहां शिव का गुणगान करते देखा जा सकता है।

कृष्णदत्त भी बकरीदी के साथ ईद आदि त्योहारों की खुशी साझा करते हैं। यह दोस्ती आज की नहीं बल्कि 75 साल पुरानी है। 82 साल के बकरीदी और 85 के कृष्णदत्त की मित्रता इलाके में मिसाल है। ये बालसखा साझा संस्कृति की उस विरासत की झलक देते हैं, जिस पर देश टिका हुआ है। श्रद्धालुओं के सहयोग और इस वयोवृद्ध जोड़ी की मेहनत से गांव के प्राचीन तपेश्वरनाथ स्थान पर आज भव्य मंदिर खड़ा है। कृष्णदत्त इसकी देखभाल करते हैं। वैसे तो बकरीदी यहां गाहे-बगाहे आते रहते हैं, लेकिन खास मौकों पर वह अनिवार्य रूप से मौजूद होते हैं। महाशिवरात्रि का मेला हो या सावन में शिवभक्तों का रेला, इनके बीच बड़ी दाढ़ी और टोपी में बकरीदी बरबस ही सबका ध्यान खींच लेते हैं।